मैं सुहाना से मिलकर बाहर निकली ही थी कि एक सुन्दर से जवान लड़के से टकरा गई। मैं एकदम से घबरा गई- हाय अल्लाह…! Mujse Dosti Karoge
“माफ़ करना मोहतरमा…” उसने तुरन्त माफ़ी मांगी।
“जी, कोई बात नहीं…” मैंने अपना दुपट्टा का कोना अपने मुँह के कोने में दबा लिया और मुस्करा कर उसे तिरछी नजरों से घायल कर दिया।
“आपको पहचाना नहीं… आप?” तिरछी नजरों से घायल उसके मुँह से निकल पड़ा।
मैं हंस दी… और शरमा कर तेज कदमों से आगे बढ़ गई। मैंने जाने क्या सोच कर दरवाजे से मुड़ कर पीछे देखा… वो बुत बना मुझे ही निहार रहा था।
मैंने फिर से मुस्करा कर और जानकर शरमा कर दुपट्टे से चेहरा छुपा लिया, वो लपक कर भागता हुआ मेरे पीछे आ गया- …हुजूर… जनाबे-आली… अपना नाम तो बताते जाईये…?!!
“जी… शमीम बानो…” मैंने अपनी सुरीली आवाज में कहा, फिर से मैंने अपना चेहरा शरमा कर ढांप लिया।
“खुदा की कसम… मार गई हमें तो…” कितनी संगीत भरी मिठास थी।
मैं भाग कर बैठक में पहुँची तो अब्दुल मेरा वहाँ इन्तजार कर रहा था।
“चलें क्या… सुहाना से मिल ली…?”
“हाँ वो तो मिल ली… पर वो खूबसूरत जवान कौन था?”
“वो जो अभी अन्दर गया है…? सुहाना का भाई है… हमीद नाम है।”
“खुदा की कसम, बड़ा जालिम लगता है वो, क्या चीज है हरामजादा?”
“बस तुझे तो लड़का नजर आया कि चूत में खुजली शुरू…” अब्दुल एकाएक चिढ़ सा गया।
“अरे अब चल ना…” झुंझला कर वो बोला।
हम दोनों बाहर आ गये। मेरे दिलो दिमाग में हमीद छाया हुआ था। कैसा होगा उसका लण्ड? लगता तो सॉलिड है साला… चक्कर में तो पक्का आ ही जायेगा…
अब्दुल सब समझ रहा था, आखिर मुझे वो तीन सालों से चोद रहा था। कुछ दिनों से वो खिन्न सा रहता था… पर मैं अब्दुल से डरती भी थी कि उसके दिल पर क्या गुजरेगी। पर नये लण्ड की चाह में मेरे मुँह में पानी भर आया था। कहते हैं ना चूत को तो सिर्फ़ लण्ड से राहत मिलती है।
दूसरे दिन ही मैंने हमीद को अब्दुल के घर जाते हुये देख लिया था। मैंने तुरन्त अपनी नई वाली पेन्सिल जीन्स पहनी और एक टाईट सा बनियान नुमा टॉप डाल लिया। मेरा दुबला पतला बदन बहुत सुन्दर लग रहा था। मैंने तुरन्त अपना स्कार्फ़ लिया। मुँह को लपेटा और अब्दुल के घर की ओर तेजी से चल दी। मेरी नजर बड़ी तेजी से हमीद को ढूंढ रही थी। वो ताई के पास बैठा हुआ था।
“आओ बानो… आओ… यह हमीद है… फ़ैय्याज भाई का लड़का है।”
“आदाब अर्ज… भैया…”
“आदाब… आपको घर पर मिल चुका हूँ।”
“जी… जी…” मैंने धीमी आवाज में मिमियाते हुये से कहा।
“बानो और हमीद… तुम दोनों वहाँ बैठक में बैठो… मैं चाय बना कर लाती हूँ…”
मैं सर झुका कर चुपचाप बैठक में आ गई। हमीद भी लपक कर मेरे पीछे पीछे आ गया- खुदा खैर करे… कभी आपको देखते हैं, कभी अपने आप को…!
मैंने शर्म से नजर नीची कर ली…- जी… ये आप क्या फ़रमा रहे हैं…?
“क्या चेहरे से ये जनाब का नकाब उतरेगा… मेरे हुजूर…?”
मैं और शरम से सिमट गई। मैंने धीरे से अपने स्कार्फ़ को हटाया और चेहरे को बेनकाब कर दिया।
“या अल्लाह… मेरे खुदा… आसमानी जन्नते रूह से सामना हो गया… इतनी बेमिसाल… सुन्दरता की इन्तेहां…!”
“मेरे खुदा… ये आप क्या फ़रमा रहे है?” मैंने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया।
“बादलों में चांद को ना छुपाओ ऐ हुस्नपरी… जलवा देखने के लिये होता है…”
“मैं जाती हूँ जनाब… आप तो इन्शाअल्लाह दीवाने होते जा रहे हो।” मेरे दिल में खुशियों के अम्बार मचलने लगे। लगा कि यह आशिक साला फ़ंस जाये तो जी भर कर चुदवा लूँ।
“मोहतरमा… दिल घायल… जिगर घायल… घायल मेरी जान… कहो तो जान दे दूँ इन कदमों पर !”
“मियां हमीद साहब… अब आप हदें पार करते जा रहे हैं…!” मैंने जरा तेज स्वर में कहा।
वो चौंक उठा। उसका चेहरा उतर सा सा गया… मैं खिलखिला उठी।
“ये हंसी… जैसे बाग खिल उठे… हसीना हंसी तो फ़ंसी… बानो जी मुझे आपसे मुहब्बत हो गई है।”
“बहुत फ़्लर्ट कर लिया हमीद साहब… बस करो… मुझसे दोस्ती करना है तो बोलो…?”
“फ़्लर्ट नहीं… मुहब्बत…”
“बोलो दोस्ती करोगे…?”
“हाँ भई हाँ…!”
“तो आज से हम दोस्त… बोलो शाम को तलैया पर मिलोगे… खर्चा करना पड़ेगा?”
“जान हाजिर है जाने जहां… खर्चे की क्या बात है? बानो आप बहुत अच्छी हैं…”
“आप तो जोकर हैं बिल्कुल… इतना हंसाया कि मुझसे रहा ही नहीं गया… बाय…!”
“शाम को तलैया पर…”
मैं शाम को टूसीटर लेकर तलैया पर आ गई। वहीं पर वो मेरा इन्तजार करते हुये मिल गया।
“चलो उस रेस्टोरेन्ट में चलते हैं, कुछ ठण्डा लेंगे…”
हमीद खूबसूरत तो था ही… शरीर से बलिष्ठ भी जान पड़ता था। उसकी सफ़ेद कार मंहगी सी लग रही थी। हम दोनों रेस्टोरेन्ट में चले आये और एक कोने वाली सीट चुन ली।
“मेम साहब… वो केबिन खाली है…” शायद बेयरा हमें भांप चुका था।
मैंने हमीद को इशारा किया। हमीद ने चुप से पचास का नोट उसे दे दिया और धन्यवाद कहा।
अच्छा केबिन था… धीमी लाईट थी म्यूजिक भी बहुत धीमा पर कर्णप्रिय था। हम दोनों पास पास बैठ गये। बेयरे ने आते ही कोल्ड ड्रिंक रख दिया। हमीद ने शायद कोई उसे इशारा किया। वो चुप से चला गया। मैं सब समझ रही थी कि हमीद कुछ करने के मूड में है। चलो मुझे इन नाटक से छुट्टी मिली। बस अब तो मुझे उसे पटाना भर था। उसकी जांघ मेरी जांघ से छू रही थी।
उसने चुप्पी तोड़ी- जानती हो बानो… आप बहुत सुन्दर हैं…
“झूठ बोलना तो कोई तुमसे सीखे…”
“ये जो गालों पर डिम्पल हैं ना… बला के सेक्सी हैं…”
“फिर झूठ… आप भी कोई कम नहीं हो… ये सलमान खान जैसी बॉडी… ये दिलीप कुमार से उड़ते हुये बाल… मोहक हंसी… सच में… कोई फ़िल्मी हीरो लगते हो !”
“…बानो जी बस आप तो…” उसने मतलबी हंसी बिखेर दी।
मैंने सोचा शुरूआत तो कर ही दूँ… वर्ना ये भोसड़ी का हवा में ही मुझे चोद देगा। मैंने धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रख दिया।
वो तो जैसे कांप उठा…उसके बदन की झुरझुरी मुझे भी महसूस हुई।
मैंने धीरे से उसकी जांघ दबाई, उसने प्रतिउत्तर में मेरी कमर में हाथ डाल दिया। मैं थोड़ा सा कसमसाई।
“बानो… मेरी बानो…”
“हां मेरे हमीद…”
“मैं तो आपका दीवाना हो गया हूँ !”
“सच में मेरी जान…?”
मैं धीरे से उसकी जांघ दबाते हुये उसके लण्ड की ओर हाथ सरकाने लगी। उसका शरीर कंपकपाहट से लहरा सा रहा था। उसकी सांसें तेज हो उठी। उसका हाथ मेरी कमर से हट कर मेरी चूचियों की तरफ़ बढ़ चला। मेरी धड़कनें भी बढ़ गई। एकाएक उसने मेरी एक पूरी कठोर चूची थाम ली और दबा दी।
मैंने भी उसका लण्ड जोर से थाम के दबा दिया। वो तड़प सा उठा।
“उफ़्फ़ ! हमीद, बस करो… मार डालोगे क्या?” मेरी भी सांसें फ़ूलने लगी।
“जरा जोर से दबाओ मेरे मिठ्ठू को बानो जी… उह्ह्ह्ह दबाओ ना…”
“देखो जी, तुम्हारी चूं ना बोल जाए।” मैंने अपनी चूचियाँ उसकी ओर उभार दी।
“उफ़्फ़्फ़… बानो जी… दबा कर साले का रस निकाल दो…”
“नहीं… हमीद जी बिना शादी के… ये सब नहीं… रस तो शादी के बाद ही निकालेंगे।”
मैंने उसे धक्का देकर सीधे बैठा दिया। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। मैंने अब धीरे से अपनी असलियत पर आना आरम्भ कर दिया था। Muslim Sex Story
“हमीद साहब… इस ठण्डे की पहले तो पूरी मार तो दो…”
“मार दो… मतलब?”
“पी लो यार… फिर चलो खाने की मां भेन करते हैं…”
वो मुझे देखता ही रह गया…
खाना खाकर हम दोनों बाहर निकल आये… साढ़े आठ बज रहे थे, हम दोनों कार में बैठ गये… उसने कार स्टार्ट कर दी और आगे बढ़ गये। मैंने धीरे से हाथ बढ़ा कर उसका लण्ड पकड़ लिया। उसने धीरे से साईड में कार लगा दी।
“आह्ह्ह, बानो… मजा आ गया यार… जोर से दबा दे…”
“भोसड़ी के ! लण्ड बाहर तो निकाल।”
उसने पैन्ट की जिप खोली और चड्डी के साईड में से लण्ड बाहर निकाल दिया।
अच्छा लण्ड था… मोटा भी ठीक ठाक था… लम्बाई भी अच्छी थी। मैंने उसका लण्ड सहलाया…
“अरे साले… टांगें तो खोल… ठीक से तो लण्ड बाहर निकाल यार !”
जब पूरा लण्ड उसने बाहर निकाल लिया तो मैं उस पर झुक पड़ी। खारा खारा लण्ड मस्त सख्त और चोदने को तैयार था। उसका कड़क लण्ड लेने को मन मचल उठा। चूत में ऐसा लण्ड फ़ंस जाये तो आनन्द आ जाये।
“भेनचोद… लौड़ा धोया नहीं था क्या… नमकीन लग रहा है।”
“नमकीन तो तू भी है मेरी बानो… चूस ले…” XXX Hindi Sex Story
बहुत मजा आया उसका लण्ड चूसने में… उसका खिला हुआ मस्त सुपारा… बेपर्दा… बाहर से फ़ूल कर टमाटर जैसा लग रहा था।
“मेरी रस भरी चूत पियेगा क्या… तुझे देख कर साली रस से लबालब भर गई है।”
“क्या बात है बानो… मेरा जहे नसीब… जवान चूत का स्वाददार रस…”
मैंने अपना जीन्स नीचे खींच कर चूत को खोल दिया। मेरी खूबसूरत चूत को देख कर तो वो वैसे ही पगला गया।
वो पहले तो मेरी चूत को सूंघता रहा…
“कुत्ता है क्या भड़वा… जीभ से चाट और फिर चूस…”
“अरे मजे तो लेने दे पहले…” उसने जोर से सांस भरी और मदहोश सा हो गया।
मेरी चूत गीली हो कर लप लप करने लगी थी। जल्दी से मेरी चूत चाट ले तो गीलापन तो दूर हो…
तभी उसकी लपलपाती हुई जीभ ने सड़ाक से मेरा चूत का पानी चाट लिया।
“क्या महक है बानो चूत की… मजा आ गया !”
“बहुत दिनों से कुँवारी रहने से…”
फिर चूत में खुजली चलने के कारण यौन स्त्राव से मेरी चूत में बला की तेज सुगन्ध आने लग गई थी। उसने जोर जोर से मेरी चूत को चूसना शुरू कर दिया। मेरे दाने को भी उसने खूब चूसा।
मैंने उसे अपने झड़ने पर ही उसे रोका… झरने पर मैंने अपनी सांसें काबू में कर ली। पर अभी उसके मस्त लण्ड का स्वाद लेना बाकी था।
“बस बस हमीद भाई… मजा आ गया। चलो अब लण्ड निकालो और ठीक से बैठ जाओ।”
मैंने उसका लण्ड पकड़ा और जोरदार मुठ्ठ मारी… फिर मुँह में भर कर उसे खूब चूसा…। उसके लण्ड से भी जवानी के स्त्राव की तेज गन्ध आ रही थी। मैंने उसका लण्ड खूब चूसा… उसे तड़पा कर रख दिया। लण्ड चूसने में मेरा अपना अनुभव काम में आया। उसका खूब माल निकला… उसका पूरा ही वीर्य निकाल कर मैंने पी लिया।
हमीद अब सन्तुष्ट था। उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी…
“सुहाना… तुझे लण्ड खाये कितना अरसा हो गया है?”
“यही कोई दो महीने… बस अगले महीने वो कुवैत से आ जायेंगे तो हम अपने घर में फिर से चले जायेंगे… फिर तो रात रंगीली और दिन उजियारे… !”
“खायेगी मस्त लण्ड… एक है मेरे पास…”
“अरे वो हमीद भैया नाराज होंगे ना ! उन्हें पता नहीं चलना चाहिये बस !”
“अरे तू अपने भैया को ही क्यूँ नहीं पटा लेती… फिर घर के घर में ही…”
“पागल है क्या? देखा नहीं है उसको… ठीक से तो बात करता नहीं है… अरे नहीं, तू अपना वाला ही खिला दे मुझे… कौन है वो?”
“अरे अब्दुल भाई ही है वो तो… मैं तो उसका लण्ड खूब खाती हूँ… इसीलिये तो कहती हूँ…”
“हाँ तेरे अब्दुल को तो मैं जानती हूँ। पता नहीं बानो… मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती है… डर लगता है ना…”
“पर है उसका मस्त लौड़ा ! अरे मस्ती आ जायेगी तुझे… एक बार ले कर अन्दर-बाहर तो करके देख…”
उसके दिल में मुझे लगा कि हलचल सी हुई। उसकी आंखे ललचाई सी लगी।
“हाय अल्लाह… वो तो मुझे घास भी नहीं डालता है। हाय… अन्दर-बाहर क्या करेगा वो?”
“छोड़ ना यार… घास नहीं लण्ड खाना है… अच्छा तेरा भैया है ना हमीद… उससे मैं चुदवा लूं…?”
“वो तो आशिक मिजाज है, थोड़ा सा पटायेगी ना, वो तो तेरी झोली में आ गिरेगा।”
“और तू अब्दुल से अन्दर बाहर करवा लेना !!!”
“तो फिर ठीक है… मैं और आप… हमीद और अब्दुल… साथ साथ ही चुदा लेंगे।”
“साथ साथ… मेरे अल्लाह… शरम से मर जाऊँगी मैं तो…”
“अरे साथ साथ चुदवाने में चूत और अधिक फ़ड़कती है… लण्ड तो क्या खूब ही कड़कड़ाता है… अरे यार चूत तो सोच सोच कर ही पानी छोड़ने लगती है।”
“पता नहीं… कसम से… जाने क्या करवायेगी तू बानो?”
“कल शाम को घर पर कोई नहीं है आठ बजे आ जाना…” Antarvasna Story
“अरे मेरे घर पर भी कल सब साहिल खान साहब के यहां जायेगे… फिर तो सुबह ही आयेंगे वो…”
“अरे मेरे अब्बू भी वहीं तो जा रहे हैं… तो मैं कल तेरे यहाँ आ जाती हूँ…!”
“पक्का ना…?”
“अरे मुझे तो अभी से चुदने की लग रही है बानो… देख जरूर चुदवा देना… बहारों के सपने मत दिखाना।”
दूसरे दिन सवेरे ही सुहाना दूध लेने दुकान पर आई तो मैंने उसे देख लिया। मैंने सोचा उसे शाम की बात याद दिलवा दूँ। मैंने उसे दूर से ही इशारा कर के बुला लिया। वो तेज कदमों से मेरे पास आ गई।
“सुहाना, याद है ना शाम की बात…?”
“अरे सुन तो बानो… कल शाम को तो गजब हो गया…!”
“चल चल अन्दर चल… वहीं बताना…”
मेरे कमरे में आते ही उसने बैठते हुये कहा… “गजब हो गया यार… जानती है कल क्या हुआ?”
मैंने उसे आश्चर्य से देखा…”बता तो ऐसा क्या हो गया।”
“शुरू से बताती हूँ… सुन…”
उसने अपनी आप बीती सुननी आरम्भ कर दी…
शाम को खाने बाद रात को नौ बजे हमीद मेरे कमरे में आया… मैं उस समय अपने कपड़े समेट रही थी। सोने के लिये मैं तो हल्के कपड़े पहने हुई थी। बस एक पेटीकोट और ढीला सा ब्लाऊज पहना हुआ था।
“क्या कर रही हो दीदी?”
“अरे बस कपड़े लगा दूँ फिर बस आराम करूँगी और क्या !”
“तू अब्दुल को जानती है?”
“मेरा दिल धक से रह गया… ये क्यों पूछ रहा है?”
“न… न… नहीं तो… बस वैसे जानती हूँ… देखा है… मस्त बाते करता है !”
“तुझे पसन्द है वो…?”
“मैंने हमीद को बड़ी बड़ी आँखों से देखा, मुझे लगा कि जरूर कोई बात है ! मेरी तो बानो से बात हुई थी… कहीं इसने सुन तो नहीं ली थी।”
मैंने भाईजान से कहा,”यह क्या बात हुई भाईजान… पसन्द होने से क्या होता है?”
तभी उसने पास में बिजली का स्विच ऑफ़ कर दिया… कमरे में अंधेरा छा गया… तभी उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने से चिपका लिया।
“दीदी… मैं पसन्द हूँ या नहीं…”
मेरा दिल धड़क उठा…
“अरे छोड़ मुझे… यह क्या कर रहा है?”
“चुप… चुप… चल बैठ यहाँ… लगता है अब तेरी शादी करवानी पड़ेगी… बहुत बिगड़ने लगा है आजकल…”
मुझे यूं हंसी मजाक करते हुये देख कर वो सामान्य हो गया।
“क्यों कैसी रही?”
“क्या मतलब?”
“अरे मैंने ही तो उसे समझाया था कि एक बार कोशिश तो कर… हो सकता है सुहाना राजी हो जाये।”
“धत्त धत्त…!” कहते हुए सुहाना चली गई।
शाम को अब्दुल और मैं आठ बजने का इन्तजार करने लगे।
मैंने बिना चड्डी की नीची सी फ़्रौक पहन ली और ऊपर एक ढीला ढीला सा टॉप डाल लिया।
“देख सुहाना को मजे देना… ताकि आगे भी वो तुझसे चुदवा ले…”
“थेन्क्स बानो… अभी तो तुझे चोदने का मन कर रहा है…!”
“अब इतना तो चोद दिया… तेरी बहन हूँ यार… कुछ तो शरम कर… किसी अपने दोस्त का कल्याण कर…!”
“मां की लौड़ी, हर बात में लौड़ा चाहिये… अरे चल चल… वो तो निकल रहे हैं।”
“जाने तो दे ना पहले…”
हम दोनों अब धीरे धीरे सुहाना के घर की ओर चल पड़े। उसके अम्मी-अब्बू कार में निकल चुके थे। घर का दरवाजा सुहाना ने खोला। अब्दुल को देख कर सुहाना शरमा गई।
“हाय… आप हैं… आईये आईये… उसकी नजरें नीचे झुक गई।”
“बस इसी अदा ने तो हमें मार दिया…” फिर अब्दुल ने सुहाना का सर ऊपर उठाया… “कौन ना मर जाये इस सादगी पर !”
अब्दुल के मुँह से मैं पहली बार शायरी जैसा कुछ सुन रही थी। मैंने उन्हें अकेला छोड़ा और आगे बढ़ गई। पीछे से अब्दुल ने सुहाना को चूम लिया।
वो जाने लगी तो अब्दुल ने उसकी कमर पकड़ कर अपने से लिपटा ली।
“सुहाना भाभी… लण्ड लोगी… सच में स्वर्ग ले चलूंगा।” अब्दुल की धीमी सी आवाज आई। साले भड़वे ने तो इतने रोमान्टिक अन्दाज में मुझे कभी भी प्रोपोज नहीं किया वरना तो मैं उस पर मर मिटती। पर मैं जानती थी कि वो चोदे किसी को भी… पर मरता मुझे पर ही है।
“भैया… मैं तो आपकी दासी हूँ… जो खिलाओगे… खाऊँगी… चाहे लण्ड क्यों ना हो… जहां ले चलोगे… चलूँगी… चाहे नरक ही क्यों ना हो।”
अब्दुल ने उसके मुँह पर अंगुली रख दी। मैं चुप से दोनों की नाटकबाजी देख रही थी। ये मर्द भी ना… धत्त… मरने दो। वो दोनों वहीं खड़े खड़े एक दूसरे को प्यार करने लगे।
“उफ़्फ़ ! यह हमीद कहाँ रह गया।”
“सुहाना… हमीद कहां है?”
अम्मी और अब्बू को छोड़ कर आ जायेगा… वो तो फिर से अब्दुल का लण्ड ढूंढने लगी।
“हाजिर हूँ जनाब…” हमीद ने नाटकीय अन्दाज में एण्ट्री ली। मेरी तो बांछें खिल गई। वो बाजार से सींक कवाब और मटन की टिकिया लाया था।
“आओ भई… सुहाना चाय-वाय बना लो… नाश्ता कर लो, फिर खाना भी तैयार है। अरे उसका लौड़ा तो छोड़ दे अब !”
सुहाना किचन में गई और चाय बना कर ले आई। अब्दुल तो चाय के साथ सुहाना के मम्मे भी चूसता जा रहा था।
“मस्ती आ रही है बहना…?” सुहाना से यह कहते हुए हमीद ने मुझे जोर से लिपटा लिया…”बानो सच बता… कितने लौड़े खाये हैं आज तक…?”
“मेरे राजा बस एक ही खाया था… वो भी गलती से… प्लीज माफ़ कर दो ना।”
“बस एक ही बार… साली बड़ी रसीली है…! कल तो ऐसे कर रही थी कि जैसे साली टेक्सी है और अभी तक बस एक बार ही…?”
“आओ हमीद… अब चोद डालो मुझे… बरसों की तड़प मिटा दो… वो तो चुदने की लग रही थी ना इसलिये तुझे लगा होगा… अरे चलो ना कब चोदोगे…?”
मैं जल्दी से अपने कपड़े उतार कर चुदने को तैयार हो गई। मुझे देख कर सुहाना ने भी अपने बचे खुचे कपड़े उतार फ़ेंके।
“आजा सुहाना… यहां मेज पर आ जा… देख यूँ… ऐसे कर ले… मैंने सुहाना को चुदाने के लिये आवाज दी।
मैंने अपनी दोनों कुहनियाँ मेज पर रख दी और झुक गई… अपनी गाण्ड मैंने उभार ली… सुहाना ने भी मुझे देख कर मेरी तरह ही कर लिया और मेरी बगल में ही झुक कर अपनी गाण्ड उभार कर खड़ी हो गई। हमीद और अब्दुल दोनों ने अपनी पोजीशन सम्भाल ली। किसी काम देवता की तरह दोनों मर्द सधे हुये चोदने की तैयारी में थे। मैं अपनी आंखें बन्द किये हुये हमीद के मोटे लण्ड के घुसने की राह देख रही थी। कैसा कड़क लण्ड होगा… साला अन्दर घुसेगा तो जान ही निकाल देगा।
फिर एक मधुर सी गुदगुदी मेरी चूत में उभर आई। उसका खिला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत में हल्के हल्के रगड़ खा रहा था। तेज खुजली होने लगी… चूत लपलपाने लगी… पानी छोड़ने लगी। मैं पीछे की ओर अपनी चूत उछालने लगी। साला बदमाश था… मुझे तड़पा रहा था। तभी उसके मर्दाना कठोर हाथ मेरी चूचियों पर आ गये… उफ़्फ़… बहुत आनन्द आने लगा था। उसने अपने अंगूठे और अंगुली की
सहायता से हल्के से मेरी निप्पल को मसल दिया। वार तो छाती पर निप्पल पर हुआ था… पर जलन चूत में उभर आई थी। तब उसका नरम सुपाड़ा मेरी चूत पर दबने लगा… मेरी सांसें एक सुख की चाह में तेज हो गई…
फिर आह्ह्ह्ह्ह… फ़क से अन्दर घुस गया… बहुत दिनों से नहीं चुदी थी ना, इसलिये चूत कुछ टाईट सी थी। एक अदद कड़क लण्ड की चाह थी, सो वो भी कड़कड़ाता हुआ चूत के भीतर उसे फ़ाड़ता हुआ अन्दर घुसने लगा। मैंने अपनी टांगें और चौड़ा दी… मेरी चूचियां दब उठी… उसके मर्दाना हाथ मेरी छाती दबाने और मसलने लगे। मैंने अपनी आंखें धीरे से खोली। सुहाना तो बुरी तरह से चुद रही थी।
अब्दुल भी नई चूत को चोद कर खुश था और अपना जोर उसने सुहाना की चूत पर लगा दिया था। वो भी हमीद की तरह गाण्ड पर जोर जोर से चपत मार मार कर चोद रहा था। मेरे तो पोन्द मार खा खा कर गुलाबी हो गये थे। पर हमीद कस कस कर जो लण्ड के भचीड़े मार रहा था वो तो मुझे जन्नत में पहुँचाने का काम कर रहे थे। साले ने मुझे खूब जोरदार चोदा। तभी अधिक उत्तेजना से मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया…
“बस बस करो हमीद मियां… अब लग रही है…”
“इतनी जल्दी झड़ गई झन्डू रानी…?”
“आपने तो बहुत मतवाली कर दिया था ना मियां…”
फिर मैं चीख सी उठी… उसका चाकू अब कहीं और घुस गया था। उसका सुपाड़ा अब मेरी गाण्ड फ़ाड़ने पर तुला था। बस… पीछे से चुदवाने से यही होता है ना…
चूत छक गई हो तो तोहफ़े के रूप में पिछाड़ी चोदने वाले को मिल जाती है… एक तेज मीठी सी जलन दर्द के साथ लण्ड ने गाण्ड में घुसने की कोशिश की।
“अरे सेट तो कर ले… फ़ट जायेगी भड़वे !”
“नहीं फ़टेगी यार… लण्ड है कोई लोहा तो नहीं है ना…”
उसने सेट करने के बदले एक बड़ा सा थूक का लौन्दा मेरी गाण्ड के छल्ले पर टपका दिया और फिर से लण्ड गड़ा दिया। इस बार मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हुई बल्कि एक मीठी सी गुदगुदी उभर आई। अब मैंने सर घुमाया और सुहाना को देखने लगी…
अब्दुल उसकी गाण्ड ही मार रहा था। वो भी बड़ी कशिश के साथ मुझे देख रही थी- बानो… साथ साथ चुदाने में कितना मजा आता है… तुम सच कहती थी… और मजा करना है… हमीद भाई अब जरा बदल तो लो…आखिर कब तक मेरा भैया बना रहेगा…
“चलो अब दोनों भाई बहन भी जरा मस्ती कर लें… अब्दुल भैया… प्लीज अब तुम चोद दो ना मुझे…”
अब हमीद अपनी बहन सुहाना की गाण्ड चोद रहा था और अब्दुल ना चाहते हुये भी मेरी गाण्ड चोदने पर मजबूर था।
“साली छिनाल… तेरी तो मार मार कर मैं पक गया हूँ…”
“मेरी जान मेरे अब्दुल… अब इतनी भी क्या नाराजगी…?”
“तूने तो मुझे भड़वा समझ रखा है… मादरचोद…”
“चल हट साले हरामजादे… निकाल अपना लौड़ा मेरी गाण्ड से… बड़ा आया मुझे चोदने वाला। मूड नहीं है तो चोदने की क्या जरूरत है?”
अब्दुल ने जल्दी से लण्ड बाहर खींच लिया और एक तौलिया लपेट कर पास में ही बैठ गया।
इधर हमीद जोर से झड़ गया। दोनों भाई बहन प्यार से लिपट गये थे।
“वो देख इसे कहते हैं भाई बहन… कितने प्यार से चुदाई की… और देख तो, कितनी मोहब्बत से लिपटे हुये हैं।”
“अब तुझे कितना चोदूं आखिर… बड़े प्यार से सुहाना की मैं मार रहा था, तुझे बीच में पड़ने की क्या जरूरत थी?”
“ओह बाबा… सॉरी… अब तो तू सुहाना की मस्त गाण्ड रोज मार लेना… क्यों सुहाना… देगी ना इसे…?”
सुहाना शान्त करने की गरज से बोली- मैंने कब मना किया है… अब्दुल चाहेगा तो उसे मै रोज अपनी दूंगी… पर प्लीज झगड़ो मत…
मैंने सुहाना से विनती की… प्लीज सुहाना… इसका लण्ड झड़ा दो… देखो तो गुस्से में वो झड़ भी नहीं पाया।
पर अब्दुल ने चुपचाप कपड़े पहने और जाने लगा…
“अरे रुक तो… बहुत अन्धेरा हो गया है… मैं भी आ रही हूँ… मैं नाराज अब्दुल के पीछे भागी।
हमीद और सुहाना दोनों ही हमे जाते हुये देख रहे थे… उन्हें नहीं पता था कि हम में झगड़ा क्यूं हुआ है। उसे क्या पता था कि अब्दुल मुझे दूसरे से चुदता हुआ नहीं देख सकता था… वो मुझे बहुत प्यार करता था… मुझ पर अपनी जान छिड़कता था। मेरी प्यारी चूत को वो कई बार तो देर तक चूसा करता था… मुझे गाण्ड में अंगुली करके देर तक गुदगुदाता रहता था। कई बार तो मैं दो दो बार झड़ जाती थी। प्यार करने वाले इस बात को समझते हैं… आप भी तो समझते हैं ना।
वो कई बार मुझे दूसरों से चुदवा चुका था… पर बेमन से… शायद ये सोच कर कि मेरी बानो को नये लण्ड से चुदना है… वो मेरी खुशी का बहुत ध्यान रखता था। वो चाहता था कि मेरे जीवन में भरपूर आनन्द ही आनन्द हो… वो मेरे लिये नये लड़कों का प्रबन्ध इसीलिये करता था। इसीलिये मैं भी उस पर अपनी जान छिड़कती थी। पर मेरी मजबूरी भी तो थी… मुझे तो रोज लण्ड चाहिये थे…
मोटे मोटे लम्बे और कड़क… अब्दुल तो बस एक लण्ड की सप्लाई का जरिया था मेरे लिये। अगर घोड़ा घास से प्यार करेगा तो खायेगा क्या… लौड़ा? तो आईये… मुझसे दोस्ती करोगे?